कर ली मंजूर चुनौतियों की दावत मैंने
तन्हा चलने की डाल ली आदत मैंने
भंवर भी सहमा-सहमा सा नजर आता है
मुझे देख के तूफां भी भाग जाता है
मजाल क्या, अंधेरे की सामना कर ले
और कोई मसाइल राह का रोड़ा बन ले
मुश्किलें हट जाती हैं देख यकीनेखुद के साथ
लाखों चराग हैं मेरे अज्मेसफर के साथ।
आनन्दस्वरूप गौड़ 'आनन्द'
मंगलवार, 10 जुलाई 2007
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
'मसाइल' का प्रयोग बहुत सटीक हुआ है। लगे रहिए
एक टिप्पणी भेजें