शनिवार, 27 अगस्त 2011

राहुल गांधी की लोकपाल अवधारणा

आज माननीय राहुल गांधी जी के माध्यनम से लोकपाल को मजबूत बनाने के लिए एक संवैधानिक निकाय के रूप में उसके सृजन का प्रस्तातव चर्चा में आया है जो संसद के प्रति उत्तरदायी हो और प्रसंगवश उसके स्व रूप निर्धारण हेतु चुनाव आयोग का नाम लिया गया है। साथ ही, माननीय राहुल गांधी जी का यह प्रस्ताव है कि इस विचार के प्रकाश में बहस को आगे बढ़ाया जाये।
यहां मेरे विचार से किसी भी राज्या के संविधान में केवल उन विचारों का समावेश होना चाहिए जो दिशावाही प्रकृति के हों, और राज्य् के संचालन में जिनकी केन्द्रीय वैचारिक भूमिका प्रतीत होती हो। संविधान में संशयात्मा प्रकृति के विचारों को स्थान देने का विचार आत्म‍घाती प्रकृति का है। गीता में सुस्पेष्टक है- संशयात्मा विनश्यति। आगे चलकर हम यह भी स्पतष्टृ करेंगे कि यह विचार किस तरह भारतीय चिन्तंन परम्परा के प्रतिकूल है। यहां पहले यह स्पष्ट होना आवश्यतक है कि संविधान अथवा मातृ-अधिनियम का निर्माण किन तत्वोंश से होता है और संविधान निर्माण के पश्चा्त् अन्य‍ अधिनियमों के पारित किए जाने की आवश्य्कता क्यों उपस्थित होती है। यहां ध्या‍न में यह भी रखना चाहिए कि संविधान के उपबंधों को अनुच्छेद और अधिनियम के उपबंधों को धारा कहा जाता है, अतएव संविधान निर्माण और अधिनियमन दोनों के पीछे अवधारणाओं में एक सुस्पहष्टज अंतर विद्यमान है।
संविधान के अनुच्छेदों में विधेयात्मक राजनीतिक विचारों का समावेश किया जाता है। पुनश्च्, उन विधेयात्म्क विचारों के प्रवाह में जो बाधाएं उपस्थित होती हैं उनके निवारण हेतु अधिनियमन की आवश्याकता होती है।
लोकपाल का विचार अधिनियमन की प्रकृति का है, भारत की जनता आरम्‍भ से ही यह मान कर नहीं चल सकती है, कि उसके द्वारा चुने गये प्रतिनिधि स्वार्थी प्रकृति के और भ्रष्टाचरण युक्त होंगे। वास्तकविकता तो यही है कि किसी देश की विधायिका उस देश की जनता की अपनी परछांई ही होती है। अस्तु, यदि लोकपाल का विचार संविधान में सम्मिलित किया जाता है तो संविधान की प्रस्ता्वना में समस्त सकारात्मकक विचारों के साथ ही इस आशय का संशोधन करने की भी आवश्यतकता होगी कि हम अपनी पाशविक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने हेतु इस संविधान को अधिनियमित और आत्मार्पित कर रहे हैं जो कि नितान्त हास्यापस्पद है और भारतीय चिन्तोन के सर्वथा प्रतिकूल है जो हर आत्मा में सत् चित् और आनन्द का वास देखती है।
इस प्रकार अब यह स्प्ष्ट हो गया होगा कि संविधान के सभी घटक परस्पर एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी होते हुए संविधान की मूल अवधारणाओं को व्यवहार रूप में चरम तक पहुंचाने के लिए आपस में पूर्ण सामंजस्य के साथ निरन्तर प्रयत्नंरत रहते हैं। इस उद्देश्य संसिद्धि में जो नकारात्मक तत्व प्रकट होते हैं उनके अधिनियमन अथवा नियंत्रण हेतु समय और परिस्थितियों के अनुरूप अधिनियमों की आवश्यकता होती है। संविधान हमारे राजनीतिक विचारों की गंगोत्री है जिसमें संशय-जनित विचारों का प्रवेश गंगोत्री में ही विष घोल देने के समान होगा और संविधान की गरिमा को इससे निश्चय ही आघात पहुंचेगा।
आज देश तकनीकी रूप से बहुत प्रगति कर चुका है। अतएव, वर्तमान में यदि आसन्न परिस्थितियों के अनुकूलन हेतु संविधान में किसी संशोधन की आवश्यकता प्रतीत होती है तो भारत की जनता को मताधिकार की तरह ही मताधिकार देने के उपरान्त् अपने चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाने के सम्बन्ध में प्राविधान संविधान में अंतर्विष्ट किए जा सकते हैं। भारत की जनता तब निश्चितरूपेण मताधिकार के उपरान्त कुशासन के प्रति अपने क्षोभ की अभिव्यक्ति अपने चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुला करके कर सकेगी और धरना, प्रदर्शन आदि की मात्र वर्जनात्मक आवश्युकता रह जायेगी। जो जनता आज मतदान के बाद बदली हुई परिस्थिति में स्वयं को असहाय अनुभव करती है, उसके घुटन का कोई कारण नहीं रह जायेगा।

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

अन्‍ना का ऐलान

अन्‍ना का ऐलान हुआ है
हफ्ता भर देश के नाम करो
दूसरी आजादी की बेला
मिलजुल इसे सलाम करो

जनलोकपाल की आड़ लिए
जोकपाल लेकर के आए
स्विस बैंक नोट विरोधियों पर
आधी रात डण्‍डे बरसाये

दानवी चगुलों-'सोन चिरैया'
इनका काम तमाम करो

जाति धर्म का फेंक लबादा
अन्‍ना, बाबा की राह चलो
फिर गांधी अवतार हुआ है
उसके सांचे जल्‍द ढलो
अनशन और अहिंसा का
फिर से एहतराम करो

भ्रष्‍टाचारी घुटने टेकें
राजनीति न रहे तिजारत
भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था चोला बदले
ईमान सत्‍य हो जाये आदत
सत्‍ता के बेईमानों की
अब तो नींद हराम करो

अन्‍ना का ऐलान हुआ है
हफ्ता भर देश के नाम करो
दूसरी आजादी की बेला
मिलजुल इसे सलाम करो

- योगेश त्रिपाठी 'बेताब'

गुरुवार, 19 जुलाई 2007

ताज

मुमताज़ का ये ताज है हिन्‍दोस्‍तान में
इसकी अजीब शान है सारे जहान में
देता है दर्स इश्‍व व मोहब्‍बत का आज भी
आवेज़ां अक्‍स इसका है हर एक मकान में
आवेज़ां- लटका हुआ

'इजहार' फैज़ाबादी

बुधवार, 11 जुलाई 2007

मित्रों के लिए कुछ और

चर्चा पूरी तरह अनौपचारिक माहौल में शुरू हुई। समय इतना कम कि हाथ हिलाने मिलाने तक में जो लोग साथ आ पाये बस उतने ही.. जैसा कि शैलेश जी ने कहा कि सिर्फ चार। फोटो वगैरह तो तब ली जा सकती है जब पहले से कुछ सोचा और तैयार किया गया हो। कैमरे वाला मोबाइल किसी के पास होता तो बात और थी। कुछ खिंच-खिंचा जाता। मगर चर्चा बड़ी गर्मजोशी में हुई। अनेक कोणों से चिट्ठाकारी के महत्‍व को रेखांकित किया गया। यह पाया गया कि चिट्ठाकारी ने अभिव्‍यक्ति के पैरों की सारी जंजीरें खोल दी हैं। जैसा कि प्रिंट-मीडिया अमूमन कलम पूंजी की गुलाम पायी जाती है.. वैसा यहां नहीं है। इण्‍टरनेट एक इण्‍टरऐक्टिव मीडिया है.. इसलिए यहां लिखने-पढ़ने में कोई बाह्य बंधन नहीं है। यहां मुंह-देखी आलोचना का चाल-चलन नहीं है, अपितु, आत्‍मीय विवेचना का रिवाज प्रचलित है। यह सब और भी बहुत सारी खूबियां मिलकर चिट्ठाकारी के सुन्‍दर भविष्‍य की ओर संकेत करती हैं।

मंगलवार, 10 जुलाई 2007

फैजाबाद में हुई हिन्‍दी-ब्‍लागरों की गोष्‍ठी

पिछले 6 जुलाई, 2007 को जनपद फैजाबाद में शहीद उद्यान में हिन्‍दी-ब्‍लागरों ने आपस में चर्चा का अवसर निकाल ही लिया। दरअसल मौका था हिन्‍द-युग्‍म के ब्‍लाग-नियंत्रक शैलेश भारतवासी का जनपद फैजाबाद आगमन... हालांकि वक्‍त भी कम और उन्‍हें दो घण्‍टे में सुलतानपुर रवाना होना था.. मगर आनन-फानन में यह तय हुआ कि थोड़ी देर के लिए ही सही मगर कुछ देर बैठ कर साहित्‍य-चर्चा की जाये।
आपस में परिचय के उपरान्‍त चर्चा के आरम्‍भ में महेन्‍द्र उपाध्‍याय ने साहित्यिक क्षेत्र में फैली हुई खेमेबाजी को लेकर अपनी चिन्‍ता व्‍यक्‍त की। फिर चर्चा ने वर्तमान में हिन्‍दी ब्‍लागिंग के महत्‍व एवं उसके तकनीकी पहलुओं की तरफ मोड़ लिया। आनन्‍दस्‍वरूप गौड़ आनन्‍द ने कहा कि हिन्‍दी चिट्ठाकारी अभिव्‍यक्ति का एक सशक्‍त माध्‍यम है। उन्‍होंने कहा कि कस्‍बाई एवं छोटे शहरों के लोगों में अत्‍यधिक सर्जनात्‍मकता छुपी है। आवश्‍यकता इस बात की है कि उन्हें पर्याप्‍त मिले। चर्चा में इस बात बल दिया गया कि फैजाबाद जैसे कमिश्‍नरी स्‍तर के जनपदों में हिन्‍दी ब्‍लागरों की बैठक आयोजित की जाये। शैलेश भारतवासी ने हिन्‍दी ब्‍लागिंग के अपने अनुभवों के सम्‍बन्‍ध में लोगों के साथ चर्चा की और उसके तकनीकी पहलुओं के सम्‍बन्‍ध में अवगत कराया। उन्‍होंने कहा कि चिट्ठाकारी आने वाले समय में रचनात्‍मक ऊर्जा के उपयोग का एक सशक्‍त माध्‍यम बनने जा रही है। गोष्‍ठी में पाडकास्टिंग के सम्‍बन्‍ध में लोगों की उत्‍सुकता रही। अन्‍त में, धन्‍यवाद ज्ञापन के साथ गोष्‍ठी समाप्‍त हुई।

अज्‍मेसफर

कर ली मंजूर चुनौतियों की दावत मैंने
तन्‍हा चलने की डाल ली आदत मैंने
भंवर भी सहमा-सहमा सा नजर आता है
मुझे देख के तूफां भी भाग जाता है
मजाल क्‍या, अंधेरे की सामना कर ले
और कोई मसाइल राह का रोड़ा बन ले
मुश्किलें हट जाती हैं देख यकीनेखुद के साथ
लाखों चराग हैं मेरे अज्‍मेसफर के साथ।

आनन्‍दस्‍वरूप गौड़ 'आनन्‍द'

सम्‍बन्‍धों की नदी

यहां सम्‍बन्‍धों की नदी
सहज नहीं हुआ करती
बहती नहीं निश्‍चल हर-हर
यहां उसे
काट-छांट कर
जरूरतों के मुताबिक
लोग बना लेते हैं
नहर....
ये है शहर

महेन्‍द्र उपाध्‍याय

भंगिमा

भंगिमा
द्वारा आनन्‍दस्‍वरूप गौड़