बुधवार, 11 जुलाई 2007
मित्रों के लिए कुछ और
चर्चा पूरी तरह अनौपचारिक माहौल में शुरू हुई। समय इतना कम कि हाथ हिलाने मिलाने तक में जो लोग साथ आ पाये बस उतने ही.. जैसा कि शैलेश जी ने कहा कि सिर्फ चार। फोटो वगैरह तो तब ली जा सकती है जब पहले से कुछ सोचा और तैयार किया गया हो। कैमरे वाला मोबाइल किसी के पास होता तो बात और थी। कुछ खिंच-खिंचा जाता। मगर चर्चा बड़ी गर्मजोशी में हुई। अनेक कोणों से चिट्ठाकारी के महत्व को रेखांकित किया गया। यह पाया गया कि चिट्ठाकारी ने अभिव्यक्ति के पैरों की सारी जंजीरें खोल दी हैं। जैसा कि प्रिंट-मीडिया अमूमन कलम पूंजी की गुलाम पायी जाती है.. वैसा यहां नहीं है। इण्टरनेट एक इण्टरऐक्टिव मीडिया है.. इसलिए यहां लिखने-पढ़ने में कोई बाह्य बंधन नहीं है। यहां मुंह-देखी आलोचना का चाल-चलन नहीं है, अपितु, आत्मीय विवेचना का रिवाज प्रचलित है। यह सब और भी बहुत सारी खूबियां मिलकर चिट्ठाकारी के सुन्दर भविष्य की ओर संकेत करती हैं।
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